शनिवार, 6 सितंबर 2014

कॉलेज में चुनाव

डॉ. विजय प्रताप सिंह 





दिल्ली विश्वविद्यालय एवं जे.एन.यू. में अगले हफ़्ते छात्र संघ के चुनाव सम्पन्न होने वाले हैं। कभी दल गत भावनाओं से ऊपर उठकर होने वाली छात्र रजनीति एक स्वस्थ परम्परा थी जहाँ से निकल कर तमाम युवा नेताओं ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी  उपस्थिति दर्ज की। परन्तु अब छात्र राजनीति भी दल गत राजनीति की दल-दल में फंसती जा रही है।  खैर कीचड़ में ही कमल खिलता है।

बात  सन १९९१-९२ की है। मैं बनारस के  उदय प्रताप कॉलेज में बी.एस.सी. का छात्र था। उन दिनों उत्तर प्रदेश में छात्र राजनीति काफी मायने रखती थी। मुझे याद है की भूत पूर्व प्रधान मंत्री श्री वी. पी. सिंह अपनी सरकार गिरने के बाद बनारस के बेनिया बाग में एक सभा करने के लिए आये थे और कचहरी के पास सरकारी गेस्ट हॉउस में लालू प्रसाद यादव सहित कुछ नेताओं के साथ रुके थे। हमारे कॉलेज के छात्र नेताओं के साथ तमाम विद्यार्थी वी. पी. सिंह से मिलने गए (वी. पी. सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उदय प्रताप इण्टर कॉलेज से पाई थी )।  वहां पर लालू प्रसाद यादव की एक टिप्पड़ी से नाराज छात्रों ने लालू की पिटाई कर दी थी। वी. पी. सिंह के बीच बचाव के बाद मामला शांत हुआ। जो दूसरे दिन तस्वीर सहित अख़बारों की सुर्खी बनी "उदय प्रताप कॉलेज के छात्रों द्वारा लालू की पिटाई " । नतीजा कॉलेज के छात्र संघ अध्यक्ष ने बेनिया बाग की सभा में वी. पी. सिंह के साथ मंच साझा किया। 

उन दिनों कॉलेज में छात्र संघ का चुनाव एक नया माहौल पैदा कर देता था। सभी छात्र नेता कॉलेज से जुड़ी तमाम समस्याओं को खोद-खोद कर निकालते और अपने भाषण में रेखांकित करते। चुनाव जीतने के बाद समाधान का भरोसा भी। आखिर आज़ादी के बाद से नेता यही तो कर रहे हैं। कोरा आश्वासन। चुनाव के दिन मैं छुट्टी मनाने के मूड में था।  सोचा घर से ६-७  किलोमीटर साइकिल चला कर वोट डालने क्यों जाएँ। तभी मेरे एक मित्र ने घर आकर कॉलेज चलने की बात कही और हम चुनाव का माहौल देखने कॉलेज पहुँच गए। अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट भी दिया। लेकिन जब चुनाव का नतीजा आया तो हमें अपने वोट की बहुमूल्य कीमत का पता चला।  हम दोनों ने जिस उम्मीदवार को वोट दिया था वह सिर्फ़ एक वोट के अंतर से जीता था ।

हमारे छात्र संघ अध्यक्ष ने तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह को छात्र संघ के शपथ समारोह के लिए आमंत्रित किया जिसे स्वीकार कर वो समारोह में आये। प्रधानमंत्री के समारोह में आने  का बड़ा फायदा यह हुआ की सालों से कॉलेज के सामने की टूटी फूटी सड़क रातों-रात बन गई।
  
मैंने अपने कॉलेज के दिनों हुए छात्र संघ चुनाव को अपनी नजर से देखने की कोशिश की और तक़रीबन २१ साल पहले चुनाव पर लिखी व्यंग रचना "कॉलेज में चुनाव" साझा कर रहा हूँ।


"कॉलेज में चुनाव"


बसंत की तरह खिल उठता है 
कॉलेज का प्रांगण  
नए सत्र में
नव आगंतुक छात्रों की चहल कदमी के साथ 
फिर ! धीरे-धीरे चढ़ने लगता है
छात्र संघ के चुनाव का बुखार
देखते ही देखते उग जाते हैं तमाम नेता
सफ़ेद मशरूम की तरह
और बरसाती मेढकों की तरह
टर्राते है
पहन कर सफ़ेद कुरता और सलवार
चुनाव के ऐलान के साथ बाढ़ आ जाती है समस्याओं की
और उजागर होते हैं तमाम भ्रष्टाचार
जिसे मिटाने के लिए
नेता
हाथ जोड़े कक्षाओं  में आते हैं
और साथ में आये चमचे बड़े गर्व से फरमाते है
मेरे क्रांतिकारी दोस्तों, भाइयों एवं बहनों
मेरा नेता आप सब को भायेगा
क्योंकि यह प्रशासन से " अनुशासन" को मिटाएगा
मिट्टी का तेल बँटवाएगा
जो आत्मदाह के काम आएगा*
और भी बहुत सी समस्याओं को उठाए
दो चार चुराए हुए शेर भी फरमाए
शेर सुनकर
नेता के विचार मुझे भा गए
मैंने कहा 'कलहंस'**
चल किस्मत आजमाते हैं
नेता बनने के दो चार फॉर्मूले जुगाड़ लाते हैं 
यही सोंच ! एक चमचे को पटाया
जिसने सुविधा शुल्क लेकर
मुझे एक नेता के ड्राइंग रूम तक पहुंचाया
शायद नेता को मेरा कवि ह्रदय भा गया 

जिस कारण आदर सहित बिठा कर
बिना कंसल्टेंसी फीस लिए
नेता बनने का फार्मूला कुछ इस तरह से बताया 
नेता जी बोले !
चनाव लड़ना तो आसान है 
मगर क्या जीत पाओगे 
खैर ! अगर मन बनाया है 
तो मेरी बात मान 
अपनी कविताओं से थोड़ा माहौल बना लो
कॉलेज से  २-४ साइकलें चुरा लो 
जिसे बेच कर बन जायेगा सफ़ेद लिबास
और कुछ पर्चे छपवा लो
यह सुन कर मैं थोड़ा सकपकाया
जिसे भांपते हुए नेता जी ने फ़रमाया
अबे ! साइकिल में ही हाजमा बिगड़  गया
तो नेता क्या खाक बनेगा
मुझे देख !
इस बार "हीरो पुक" पचायी है 
तभी तो कुर्ते को भी ड्रायक्लीन करवाई है 
लेकिन तू नया है… 
सायकिल से ही काम चला ले 
बस बढ़िया सा गुलाबी कार्ड छपवा ले 
यह रंग लड़कियों को बहुत भायेगा 
फिफ्टी परसेंट तू कविता और कार्ड से पा जायेगा 
बाकी की चिंता छोड़ 
इतने से ही तू
बहुमत का नेता बन जायेगा 
लेकिन जल्दी कर
यह मौसम साल में एक ही बार आएगा
मैं भी उठा और सम्मान में सर झुकाया 
बाहर निकलते हुए खुद को समझाया 
'कलहंस' तू अपने जमीर को नहीं मार पायेगा
नेता गिरी  का ख्वाब छोड़ दे
यह महान काम तुझसे न हो पायेगा
अरे जो दिल चुराने में डर गया वो साइकल क्या चुराएगा
बस लगा रह कविताओं के साथ
और 
मैं सोंचता हुआ आगे बढ़ गया…जिसका काम उसी को भाए.... नेता बने जो...


*उन दिनों हॉस्टल में खाना बनाने के लिए मिट्टी के तेल का कोटा मिलता था और मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के कारण कई जगह छात्रों द्वारा  मिट्टी का तेल डाल  कर आत्मदाह की  कोशिशें की गईं  थी। 
**मैं कविता इसी उपनाम से लिखता हूँ