शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

बापू, बंदर और चाटा

डॉ. विजय प्रताप सिंह 

जापान के निक्को शहर में बने "तोशो-गु श्राइन" (एक धार्मिक स्थल) के दरवाजे पर खुदे तीन बंदरों का प्रतीक - साभार विकिपीडिया 

बंदर । गाँधी जी के तीन बंदर। आखिर कहाँ से आये ये तीन बंदर ?  एक दिन सुबह कि सैर करते हुए पार्क में एक बंदर को देख अनायास ही यह विचार मेरे मन में कौंधने लगा। बुरा न सुनने, बुरा न बोलने, बुरा न देखने  कि शिक्षा देते तीन बंदरों का प्रतीक ! जिन्हें देख हर भारतीय को गाँधी जी की याद आ जाती है। आखिर इन प्रतीकात्मक बंदरों का जन्म कब, कैसे और कहाँ पर हुआ? इन्हे गाँधी जी के तीन बन्दर हम क्यों कहते हैं ? सोचता रहा.… मगर जबाब नहीं मिला। घर पहुंच कर गूगल बाबा के सानिध्य में जानकारी जुटाने कि कोशिश की । तो समझ में आया कि मैं कितना गलत था। सायद ज्यादातर लोग मेरे जैसा ही सोंचते होंगे।

जिन्हें मैं गाँधी जी की खोज मान रहा था, दरसल में उन तीन बंदरों का पहला प्रमाण १७ वीं  शताब्दी में जापान के निक्को शहर में बने "तोशो-गु श्राइन" (एक धार्मिक स्थल) के दरवाजे पर मिलता है। जिस पर इन तीन  बंदरों कि आकृति उकेरी हुई है। माना जाता  है कि इन बंदरों का सम्बन्ध महान चीनी दार्शनिक कन्फूसियस की  आचार संघिता में उद्धृत (दूसरी से चौथी शताब्दी ईशा पूर्व) मुहावरे पर आधारित है। मुहावरा था  "वह मत देखो जो हो मर्यादा के विपरीत, वह मत सुनो जो हो मर्यादा के बिपरीत, वह मत बोलो जो हो मर्यादा के बिपरीत, वह मत करो जो हो मर्यादा के बिपरीत। जो आठ वीं शताब्दी में टेंडाइ बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से जापान पहुंचा। जहाँ इनका सरलीकरण जापान में प्रचलित एक कहावत मिज़ारु, क़िक़ाजारू, इवाजारु जिसका मतलब है न देखो, न सुनो, न बोलो से जुड़ कर "बुरा  मत सुनो, बुरा मत बोलो और बुरा मत देखो" के रूप में हुआ ।

वैसे तो इन आदर्शों का बंदरों से कोई सम्बन्ध नहीं था। लेकिन माना जाता है कि जापानी कहावत के तीनो शब्दों के अंत में लगा "-ज़ारु" बोलने में जापानी शब्द "सारू" से मिलता है जिसका मतलब बंदर होता है। और इस तरह से ये आदर्श बंदरों के प्रतीक के रूप में जापान में प्रचलित एवं चित्रित हुए।

बाद में गाँधी जी ने अपने मिलते जुलते आदर्शों को लोगों तक पहुचाने के लिए इन तीन बंदरों के प्रतीक का उपयोग किया। और आज हम इस प्रतीक को "गाँधी के तीन बंदर" के रूप में देखते हैं। बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो, बुरा मत देखो।  "बुरा मत देखो"... मतलब बुरा होते हुए मत देखो। और गलत काम के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करो। न कि बुरा होते हुए देखकर आँखे बंद कर लिया जाय। यही ब्याख्या सुनने और बोलने के बारे में भी है । मुझे लगता है कि हमें इन तीन बंदरों के बजाय कन्फ्यूसियस के चौथे आदर्श "वह मत करो जो हो मर्यादा के बिपरीत" को  चौथे बंदर "बुरा मत करो"  के प्रतीक के रूप में आत्मसात करने कि जरुरत है।  न कि बापू के तीन बंदरों के प्रतीकात्मक शिक्षा की अपनी सुबिधानुसार व्याख्या करने की।

साबरमती आश्रम जहाँ गाँधी जी १९१५-१९३० तक रहे, इन तीन बंदरों का बड़ा सा प्रतीक आज भी लगा हुआ है। परन्तु  हाथीदांत पर खुदे हुए तीन बंदरों के प्रतीक वाली मूर्ति जिसे गांधी जी अपने साथ रखते थे २१ मई २०१३ को ब्रिटेन के लुडलो रेसकोर्स में खुली नीलामी के हथौड़े के नीचे आ गया। और राष्ट्रीय महत्व कि धरोहरों को सहेजने के प्रति सरकारी उदासीनता बार-बार उजागर होती रही है।

एक ब्यांगकर ने ठीक ही कहा है कि -

गाँधीतुम हिन्दुस्तानियों से गच्चा खा गए और ५०० से सीधे १० रुपये के नोट पर आ गये। 

खैर। तक़रीबन २० साल पहले मैंने भी गाँधी जी कि "एक गाल पर चाटा खाने के बाद दूसरा गाल आगे करने" कि सलाह के सम्भावित प्रतिफल पर "चाटा" शीर्षक से एक व्यंग लिखा था। जिसे इस प्रसंग पर प्रस्तुत कर रहा हूँ। 

"चाटा"
जब एक लड़की ने
मेरे गाल पर चाटा लगाया
तो सेवा में
मैंने दूसरा गाल भी बढ़ाया
क्योंकि ऐसा करना बापू ने सिखाया है।
तभी लड़की ने
दूसरा चाटा भी जमाया
जिसे खा कर
मैंने उसके हाथ को चूमता हुआ फर्माया।
क्यों प्रिये !
कहीं हाथ में चोट तो नहीं आई
यह सुन कर
लड़की दिल पर चोट खाई
थोड़ी सी शर्माई
अपने सर को मेरे कन्धों पर टिकाई
और
मेरे खुरदरे गालों को सहलाती हुई बोली
माफ़ करना
यह तो पहले प्यार कि मिठाई थी
जो
तुम्हारे गालों तक पहुंचाई है
और भी बहुत सी मिठाइयां लाऊंगी
शादी के बाद जी भर के खिलाऊँगी
जिसके लिए
मजबूत बेलन और चिमटे दहेज़ में लाऊंगी
यह सुनते ही मेरा सर चकराया
भागता हुआ बापू कि तस्बीर के सामने आया
और जोर- जोर से चिल्लाया
अरे !
तुमने अंग्रेजों को मनाने के लिए यही फार्मूला बनाया
जिसे मानकर मैं एक लड़की भी नहीं पटा पाया
और तो और
दोनों गाल पर चाटा खाया
अब अगर
मैं अपने आप को
तुम्हारे पद चिन्हों पर और भी चलाऊंगा
तो इसमें शक नहीं
किसी लड़की के हाथ मारा जाउंगा
अरे !
वह मुझे ऐसी मिठाई खिलाएगी
कि बाकी जिंदगी भी खटाई में पड़ जाएगी
कि बाकी जिंदगी भी..... ।