डॉ. विजय प्रताप सिंह
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पचमढ़ी का नाम यहाँ मौजूद पाँच गुफाओं के कारण पड़ा। ऐसा माना जाता है कि महाभारत में वर्णित पांच पांडवों ने अपने अज्ञातवाश के समय रहने के लिए ऊँची पहाड़ी पर इन गुफाओं को बनाया था।
१८५७ में अंग्रेजी सेना में कैप्टेन जेम्स फोर्सिथ कि अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ झाँसी कि तरफ जाते समय इस पहाड़ी पर नजर पड़ी । बाद में यहाँ के खुशनुमा मौसम के कारण इसे एक हिल स्टेशन और अंग्रेजी सैनिकों के हेल्थ रिसोर्ट के रूप में बिकसित किया गया। पंचमढ़ी को अंग्रेजों ने "सेंट्रल प्रोविंस" (आज का मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़ और महाराष्ट्र) जिसकी राजधानी नागपुर थी की गर्मियों कि राजधानी (Summer Capital) बनायी।



जैसा कि हम जानते हैं कि सभी पौधों में कुछ न कुछ औषधीय गुण होता है। और यहाँ की अपार जैव बिविधता का एक बड़ा हिस्सा यहाँ पर पाई जाने वाली बहुत सी जड़ी बूटियों एवं औषधीय पौधों का है । जिस हवा में इन औषधीय एवं दूसरे पौधों का स्पर्श एवं फूलों कि सुगंध घुली हो उस हवा के बीच में रहना और उसे सांसों में भरना अपने आप में एक चिकित्सा है। सायद यहाँ कि इसी विषेशता के चलते अंग्रेजों ने अपने बीमार सैनिकों के लिए हेल्थ रिसोर्ट यहाँ पर बनाया था।
परन्तु मुझे यह देख कर दुःख हुआ कि यहाँ पर आने वाले पर्यटक अपने पीछे जो "प्लास्टिक फुट प्रिंट" छोड़ जाते हैं वह किस तरह से इसकी सुंदरता कि चादर में पैबंद लगा रहे हैं। मुझे अंडमान द्वीप समूह के "जॉली बॉय" द्वीप पर प्लास्टिक फुट प्रिंट कम करने के लिए पर्यटन विभाग का एक प्रयोग काफी अच्छा लगा। इस द्वीप पर जाने वाले सभी पर्यटकों को साथ में ले जा रहे पानी या कोल्ड ड्रिंक्स कि बोतलों के लिए प्रति बोतल १०० रु. जमा करा कर रशीद लेनी होती है। जो लौटकर खाली बॉटल दिखाने पर वापस कर दिया जाता है।
पचमढ़ी घूमने के बाद मैं मनीराम से मिलने के लिए निकल गया। मनीराम पंचमढ़ी के फारेस्ट चौकी में सुरक्षा गार्ड के तौर पर पिछले कई दशकों से कार्यरत हैं। परन्तु शायद ही ऐसा कोई बनस्पति शास्त्र पढ़ने या पढ़ाने वाला हो, जो कभी पचमढ़ी बायोस्फियर रिज़र्व में शैक्षणिक टूर या रिसर्च के लिए गया हो और मनीराम से प्रभावित न हुआ हो। कारण ! मनीराम कि एक विलक्षण छमता है । मनीराम, जिसने शायद मैट्रिक की भी पढाई पूरी नहीं कि है । इस पूरे बायोस्फियर रिज़र्व में पाये जाने वाले सभी पेड़ पौधों के बैज्ञानिक नाम (Botanical Name) और उनकी फैमिली बिना दिमाग पर जोर डाले बता सकते हैं। इनके इसी विलक्षण छमता के लिए भारतीय प्रबंध संस्थान (Indian Institute of Forest Management), भोपाल द्वारा १२ जुलाई १९९९ को इन्हें सम्मानित किया गया। सम्मान में दिए गए प्रशस्ति पत्र के अनुसार -
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मनीराम को मिला प्रशस्ति पत्र |
" मनीराम, पचमढ़ी, जिला होशंगाबाद, म. प्र. के निवासी हैं तथा ये पौधों के ज्ञान के सम्बन्ध में एक जीते जाते शब्द कोष माने जाते हैं। वर्गीकरण विज्ञान कि औपचारिक शिक्षा न होते हुए भी , इन्हे पादप वर्गीकरण विज्ञान का गहन ज्ञान है। वनस्पति विज्ञान एवं वानिकी के छात्र एवं शोध कर्ता प्रति वर्ष पूरे भारत से आकर आप के अद्वितीय पादप ज्ञान से लाभ प्राप्त करते रहे हैं। वास्तव में पचमढ़ी में श्री मनीराम से मिले बिना उनका शैक्षणिक भ्रमण अधूरा रहता है। आप का पादप वर्गीकरण विज्ञान के क्षेत्र में योगदान सम्माननीय है। इनके द्वारा पादप वर्गीकरण विज्ञान में अद्वितीय योगदान हेतु यह प्रशस्ति पत्र अंतर्राष्ट्रीय सामुदायिक वानिकी केन्द्र के उद्घाटन अवसर पर प्रदान किया गया "
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मनीराम के साथ लेखक |